“चर्च के चबूतरे से चप्पल चोरी”

अपने देश में मंदिरों में चप्पल चोरी की घटनाएं उतनी ही आम हैं जितने कि सड़क में गड्ढे. लेकिन अभी हम गड्ढे की बात नहीं करेंगे, अभी हम सिर्फ़ चोरी की बात करेंगे. एक साथ दो बात करने से बात का फोकस गड़बड़ा जाता है और उस पर संज्ञान लेने की सम्भावनाएं लगभग ख़त्म हो जाती है. हालाँकि हमारी बात में संज्ञान लेने लायक कुछ भी नहीं है, लेकिन फिर भी हम बात चोरी की ही करेंगे.

हाँ तो बात ऐसी है कि पिछले कुछ सालों से “बड़े दिन” के दिन चर्च के बाहर चप्पलों का ढेर बढ़ता जा रहा है, और चप्पल स्टैंड की कोई व्यवस्था दिखाई नहीं देती. ऐसे में लोगों की चप्पलें इधर-उधर हो जाती हैं और कई बार तो चोरी भी चली जाती हैं. कल ही हमारे पड़ोस वाली मंगला जॉर्ज भाभी की चप्पल चर्च से चोरी हो गई. नई की नई चप्पल थी, ऊँची एड़ी की, अंगूठे वाली. अभी पिछले हफ्ते ही तो खरीदी थी उन्होंने, खास बड़े दिन के लिए. भाभीजी दु:खी थीं, भावुक होते हुए बोलीं “नासमिटे होन चर्च में भी चोरी से बाज नी आते, मदर मैरी की कसम! कहीं मिल जाए तो चप्पल ही चप्पल दे मारूं!”

मामला संगीन था, लेकिन भाभीजी के आंसुओं में हमें अपनी बेरोजगारी धुलती हुई सी नज़र आ रही थी. जीजस की मेहर हुई और एक नया स्टार्ट अप हमारे दिमाग की दहलीज़ पर आ धमका – “क्यों न चर्च के बाहर चप्पल स्टैंड का ठेका ले लिया जाए. एक जोड़ी का एक रुपया भी लिया तो दिनभर के चार-पांच सौ कहीं नहीं गए, सीज़न में हज़ार भी हो सकते हैं. लोगों की दुआएं लगेंगी सो अलग, मने पूण्य का पूण्य और रोजगार का रोजगार.”

मन में जिंगल बेल की तरह की घंटियाँ बजने लगी “क्या कमाल आइडिया है!! दुनिया में मैं पहली होउंगी जिसे चर्च के बाहर चप्पल स्टैंड लगाने का आइडिया आया है. क्या पता किसी अख़बार वाले की नज़र पड़ जाए और उठावने वाले पन्ने के आजू-बाजु कहीं हमारा भी फोटू छप जाए. हमसे प्रेरित होकर और भी लोग यह नेक काम करने लगे…..वगैरह वगैरह”

अगले ही दिन हमने चर्च के बाहर अपना तम्बू लगा दिया. सेंटर में निम्बू-मिर्च लटका कर, दो अगरबत्ती लगाकर अपना काम शुरू किया. शुरू में ही दस लोगों की टोली आई, सबने बड़ी ख़ुशी से अपनी-अपनी चरण पादुकाएँ हमें सौंप दी और ऊपर वाले का शुक्रिया अदा किया कि अब वे चप्पल की चिंता के बिना इत्मिनान से भीतर प्रार्थना कर सकेंगे. बोहनी अच्छी हुई थी, इसलिए हमने भी दो अगरबत्ती और घुमा दी. मगर हमारी खुशियाँ बस दो पल की मेहमान थीं. किसी जलकुकड़े ने हमारे स्टार्ट अप की ख़बर चर्च के पिताजी को दे दी. उन्होंने हमारे सपनों का तम्बू उखाड़ फेंका और वहां बड़ी सी तख्ती  लगा दी – “परमेश्वर को आपके पैरों का ख्याल है, कृपया जूते-चप्पल पहनकर ही भीतर आएं.”

…और इस तरह हमारे दिल के अरमां मंगला जार्ज भाभी के आंसुओं की तरह बह गए और हम नेकी करके भी बेरोजगार ही रह गए….
लेखिका :- सारिका गुप्ता

  • Related Posts

    जब दिल ही टूट गया

    मंत्री मंडल बनने से पहले की रात कई “माननीयों” पर भारी रही। जब तक नामों की पोटली नहीं खुली थी, उम्मीद ज़िंदा थी। तब नींद में गुनगुनाया करते थे, “शब-ए-इंतेज़ार”…

    भगवान के साथ रोटी

    एक 6 साल का छोटा सा बच्चा अक्सर भगवान से मिलने की जिद्द किया करता था। उसकी अभिलाषा थी, कि एक समय की रोटी वह भगवान के साथ खाए… एक…

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    You Missed

    इंदौर के इतिहास में पहली बार कांग्रेस प्रत्याशी ने चुनाव मैदान छोड़ा

    • By admin
    • April 30, 2024
    • 296 views
    इंदौर के इतिहास में पहली बार कांग्रेस प्रत्याशी ने चुनाव मैदान छोड़ा

    मध्य प्रदेश में बना दुनिया का सबसे ऊंचा जैन मंदिर

    • By admin
    • April 29, 2024
    • 336 views
    मध्य प्रदेश में बना दुनिया का सबसे ऊंचा जैन मंदिर

    महाकाल मंदिर में शुल्क देकर भी शीघ्र दर्शन नहीं कर सकेंगे

    • By admin
    • December 27, 2023
    • 335 views
    महाकाल मंदिर में शुल्क देकर भी शीघ्र दर्शन नहीं कर सकेंगे

    जब दिल ही टूट गया

    • By admin
    • December 27, 2023
    • 326 views

    चार वेद, जानिए किस वेद में क्या है….?

    • By admin
    • December 21, 2023
    • 344 views
    चार वेद, जानिए किस वेद में क्या है….?

    भगवान के साथ रोटी

    • By admin
    • December 21, 2023
    • 287 views
    भगवान के साथ रोटी