कॉमेडी के नाम पर मौका की जगह धोखा
निर्देशक :- डेविड धवन
अदाकार :- वरुण धवन, सारा अली खान, परेश रावल, जावेद जाफरी, जोनी लिवर, शिखा तलसानया
आधरित :- कुली नम्बर वन 1995
कुली से पहले भारतीय कुली फ़िल्म पर चर्चा
1983 में अमिताभ ने कुली की थी जिसका बजट 3 करोड़ था और कमाई 11 करोड़ जो कि एक हिट फिल्म रही थी।
1995 कुली नम्बर 1 गोविंदा और डेविड की जोड़ी ने बनाई थी जिसका बजट 4 करोड़ कमाई 13 करोड़ थी जो कि एक सुपर हिट फिल्म साबित हुई थी
2000 में बिल्ला नम्बर 786 मिथुन चक्रवर्ती ने फ़िल्म की थी जिसका बजट 2 करोड़ था और कमाई भी 2 करोड़ यानी फ़िल्म फ्लॉप रही थी
कूलि बंगाली फ़िल्म मिथुन ने की थी जिसका बजट 1.25करोड़ और कमाई 4.50करोड़ थी जो कि औसत हिट फिल्म थी।
फ़िल्म से पहले चर्चा
गोविंदा अभिनीत फिल्म कुली नम्बर 1 का वैधानिक रीमेक है,
जब भी रीमेक बनाई जाती है तो उसकी तुलना पहली या मूल फ़िल्म से होना स्वाभाविक प्रक्रिया है
बस इसी में यह फ़िल्म और डेविड धवन पिट गए हैं, साथ ही अपने पुत्र वरुण को भी ले डूबे है,
पुत्र मोह इस कदर हावी है कि पुराने दोस्त से दुश्मनी निकालने का नया अंदाज़ गढ़ने में लगे हैं, यही वह गच्चा खा गए है,
खैर यह फ़िल्म से एक बात सिद्ध हो गई कि गोविंदा की अदाकारी और डेविड के निर्देशन में से ज्यादा मुहब्बत गोविंदा को ही मिली थी यानी गोविंदा की एक फैन फॉलोइंग थी जिसके चलते डेविड की गाड़ी भी चल निकली थी,
कहानी
कहानी वही पुरानी ली गई है, पुरानी फ़िल्म तमिल फिल्म 1993- चिन्ना मैंपिलई की रिमैक थी,
तो कहानी वही उठाई गई है, गोआ के एक अमीर होटल मालिक रेफरी रोज़ारिया (परेश रावल) अपनी दोनो बेटियों सारा (सारा अली) और अंजू (शिखा तलसानिया) के लिए आमिर लड़को को खोज में है, एक शादीराम जय किशन (जावेद जाफरी) रिश्ता लेकर पहुचता है, वह लड़का जेफरी के मुकाबले कम अमीर है तो जेफ़री उन्हें बेइज़्ज़त कर के निकाल देता है, जय किशन आहत होकर बदला लेने पर आ जाता है, तब वह राजू कुली (वरूण धवन) को सिंगापुर के कुंवर राज प्रताप बनाकर शादी की योजना बनाता हैं,
इस मामले में राजू सारा का फोटो देखकर ही उस पर फिदा हो जाता है जिससे वह शादी करना चाहता है,
जय किशन उसके सामने अपनी योजना रखता है थोड़ी न नुकर के बाद वह ‘मुहब्बत और जंग में सब कुछ जायज” राजी हो जाता हैं,
कुँवर का शाही अंदाज देख कर जैफरी उस पर फिदा हो जाता है,
अब यहां से सच को छिपाने और झूठ को बढ़ाने के बीच परिस्थिति जन्य हास्य उयपन्न होता है,
अब झूठ को छिपाने के लिए राजू का जुड़वा भाई का स्वांग रचा जाता है,
क्या जय किशन जेफरी को सबक सिखा पाता है,
क्या राजू और सारा मिल पाते है,
तब फ़िल्म देखनी पड़ेगी लेकिन गोविंदा वाली उम्मीदे लेकर न जाए नही तो निराशा हाथ लगेगी,
पटकथा रूमी जाफरी ने और संवाद फरहाद सामजी ने लिखे है जिसमे वह अजीब सा विरोधाभास पैदा किया गया है जो कि हास्यास्पद लगता है,
गीत संगीत
पुराने गाने हुस्न है सुहाना, तुझको मिर्ची लगी तो को पुराने स्वाद से ही रखा गया है, जो कि अच्छा एहसास देते है,
कुछ सवाल जो फ़िल्म के बेतुके पटकथा से खड़े होते है,
2020 के युग मे लड़कीं अपने पिता से वीडियो कॉल पर बात करती है परंतु इंटरनेट के युग मे सिंगापुर के कुंवर की कोई जानकारी गूगल पर नही कर पाते है ???
गोआ का एक ईसाई परिवार क्यो हिन्दू पंडित के जरिये रिश्ते खोज रहा है ??
गोआ का करोड़पति इंसान सफर करने के लिए फ्लाइट की जगह रेलगाड़ी में सफर करे
कूल मिलाकर फ़िल्म पुरानी फ़िल्म से भव्य और आलीशान है परंतु बेहतर नही हो पाई है,
अदाकारी
वरूण धवन अभीनय और अतिरेक (ओवर एक्टिंग) में फ़र्क ही नही कर पाते है, जैसे गोविंदा बड़ी सहजता से यह फर्क निकाल कर दृष्य को खुशनुमा बना कर पूरा कर देते थे,वरुण की सुई धागा, बदलापुर, ऑक्टोम्बर में अच्छा अभीनय देखने को मिला था परंतु यह पिता और निर्देशक डेविड ने गोविंदा तक पहुचाने के लिए बड़ी भारी गलती कर दी है कही वरुण दीन से गए पांडे हलवा मिले न मांडे की तरह न हो जाए ??? वरुण पटकथा और संवाद के झोल में फंसते नज़र आए लेकिन राजू से कुंवर राज प्रताप वाला बफलाव उन्होंने अच्छा किया है, इसमें डेविड चाहते तो मिथुन की मिमिक्री की जगह गोविंदा की मिमिक्री भी रख सकते थे ?
सारा से न यो ज्यादा उम्मीद थी न ही रखी जा सकती है, उसे अभी बहुत अभीनय सीखना बाकी है उसके पिता को भी समय लगा था ,आशिक आवारा से दिल चाहता है तक का,
परेश रावल अपने अभीनय मे बेजोड है लेकिन उनके लिए उतनी चुस्त संवाद भी होने चाहिए यह जिसमे फरहाद सामजी पिछड़ गए है,
जावेद जाफरी, राजपाल, जॉनी लीवर को जितना काम मिला बखूबी निभा गए है,
क्यो देखे
एक पारिवारिक मनोरंजक फ़िल्म है
लेकिन गोविंदा वाली उम्मीदे बाहर ही रख कर जाए,
क्यो न देखे
कॉमेडी संवाद के साथ उसकी अदायगी और समयांतर टाइमिंग भी बड़ा फेक्टर होती है अदाकारी में वह इस फ़िल्म से गायब या कम लगे
डेविड 90 के दशक से बाहर आकर खुद को अपडेट करने की ज़रूरत है नही तो कही डेविड खुद के साथ वरूण को भी न डुबो दे ???
बजट
40 करोड़ है जो कि सेटेलाईट राइट्स से ही निकल सकता पहले दिन की कमाई 6 से 8 करोड़ सिनेमाघरों से हो सकती हैं
दर्शकों को मौका नही धोखा मिला
अंत मे
न तो वरूण गोविंदा के इर्द गिर्द पहुच पाए न ही उनकी नकल कर पाए।
पुरानी फ़िल्म में कादर खान के किरदार को छू पाना लगभग असंभव लगा।
पुशक्ति कपूर के साला वाला किरदार भी इसमें नही बैठा पाए।
फ़िल्म समीक्षक :- इदरीस खत्री