संकट में ‘फिल्मी कारोबार’

मध्य भारत (मध्य प्रदेश) में फिल्म कारोबार में बड़ा बदलाव आया है। फिल्मों को वितरित करने वाली फर्मों ने अपना काम समेटना शुरू कर दिया है। बीते 10 सालों में 11 फिल्म वितरकों ने अपनी फर्म बंद कर दी है और अब दूसरों की नौकरी कर रहे हैं। बता दें साल 2005 तक मध्य भारत में 15 फिल्म वितरक थे, जिनमें से अब केवल चार बचे हैं। फिल्म कारोबार में आए इस बड़े बदलाव के कई कारण डिस्ट्रीब्यूटर्स ने बताए हैं।

देश में फिल्मों का वितरण डिस्ट्रीब्यूटर्स फर्म के जरिए किया जाता है। इसके लिए देश को चार सर्किल में बांटा गया है। मध्य प्रदेश (सीआई), छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र (सीपी) और राजस्थान। इन सर्किलों से फिल्मों का वितरण देशभर में संचालित किए जा रहे सिनेमाघर और मल्टीप्लेक्स में किया जाता है। फिल्म डिस्ट्रीब्यूटर और सिनेमाघर मालिक आदर्श यादव ने बताया कि 90 के दशक में फिल्म वितरण की प्रक्रिया एक दम अलग थी। डिस्ट्रीब्यूटर्स फिल्मों को खरीदकर उनका वितरण करते थे, लेकिन अब यह परंपरा खत्म हो गई है। अब वितरक कमीशन के आधार पर फिल्मों का वितरण करते हैं। वहीं 2005 से 2007 तक फिल्मों के दाम 35 से 40 लाख रूपये हुआ करते थे, जो अब 4 से 5 करोड़ हो गए हैं। ऐसे में एक फिल्म वितरक को फिल्म का डिस्ट्रीब्यूशन अधिकार लेने के लिए करोड़ों की पूंजी लगाना पड़ रही थी, जिसका सीधा असर छोटे वितरकों पर पड़ा और उन्होंने फिल्मी दुनिया से अपना काम समेट लिया। उन्होंने बताया वितरकों को दूसरा सबसे बड़ा झटका मल्टीप्लेक्स की शुरुआत ने दिया। मल्टीप्लेक्स शुरू होने के बाद सिंगल स्क्रीन सिनेमाघरों में ताला डलना शुरू हो गया और छोटे वितरकों के सामने बड़ा संकट खड़ा हो गया। तीसरा बड़ा झटका कोरोना के कारण लगा लॉकडाउन के कारण फिल्म उद्योग पूरी तरह ठप हो गया जिससे बचे हुए फिल्म वितरकों के सामने परिवार को पालने की परेशानी खड़ी हो गई और उन्होंने अपना काम बदलने का फैसला कर लिया।

कमीशन पर हो रहा काम
मध्य भारत में मौजूदा समय में 45 करीब मल्टीप्लेक्स संचालित हो रहे हैं और सिनेमाघरों की संख्या 80 के आसपास है। इन स्क्रीन्स में फिल्म वितरण करने वाली चार फर्म अब कमीशन पर काम कर रही हैं, जो पहले फिल्में खरीदकर सिनेमाघरों को वितरित करती थीं। यह कमीशन फिल्म के कारोबार के 5 से 7 प्रतिशत के आसपास होता है। अगर फिल्म ने 5 करोड़ का बिजनेस किया है तो फिल्म वितरक को 25 लाख रूपये मिलते हैं। आदर्श यादव के मुताबिक कोरोना काल के दौरान एक फिल्म वितरक की करीब 10 करोड़ रूपये की आमदानी नहीं हो पाई है।

लेखक :- विवेक राठौर

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