भाजपा की बंपर जीत के बावजूद पार्टी का कोई वरिष्ट नेता निराश है…??

इंदौर : विधानसभा चुनावों में भाजपा की बंपर जीत के बावजूद पार्टी का कोई वरिष्ट नेता निराश है तो वो हैं ताई। जी हाँ, 8 बार की सांसद और लोकसभा स्पीकर रहीं सुमित्रा महाजन की निराशा का कारण ये है कि में अपने दोनों बेटों में से किसी को भी राजनीति में सेट नहीं कर पाई। इस बार ताई ने बेटे मिलिंद को टिकट दिलाने की पुरजोर कोशिश की थी लेकिन टिकट नहीं मिल सका।

ताई की कोशिश थी कि बेटे को क्षेत्र क. 3 से या राऊ से टिकट मिल जाए क्योंकि दोनों ही क्षेत्रों में निर्णायक मराठी वोट हैं। इसके लिए उनहोंने दिल्ली के कई चक्कर काटे, भोपाल में शिवराज- वीडी शर्मा तक से मिली लेकिन टिकट की मांग से पहले मिलिंद का महाराष्ट्र बाह्मण सहकारी बैंक में हुआ घोटाला नेताओं एक पहुंच गया। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने मिलिंद की कोई राजनीतिक पृष्ठभूमि न होने, परिवारवाद को बढ़ाया न देने को लेकर उन्हें टिकट देने से इंकार कर दिया। बैंक के 1986 से 1989 तक अध्यक्ष रहे अनिल कुमार घड़वईवाले बताते है कि बैंक में वर्ष 1987 से 89 तक सुमित्राताई संचालक रही हैं। 1927 में स्थापित 10 हजार सदस्यों वाली महाराष्ट्र बाह्मण सहकारी बैंक 1997 से 2004 (बैंक का लाइसंत निरस्त होने तक) के सात साल के दौरान तत्कालिन संचालकों द्वारा सहकारिता अधिनियम एवं उसके तहत रजिस्ट्रर्ड, उपविधि को दरकिनार करते भारी वित्तीय गड़बडि की। नतीजा ये कि 2004 में बैंक दिवालिया हो गई। इन सात सालों में बैंक पर 1997 से 2002 और 2002 से 2004 तक सुमित्रा ताई के बेटे मिलिंद और बैंक घोटालों की वजह से अदालत द्वारा 5 साल को कठोर कारावास की सजा पाई स्व. प्रो. यशवंत डबीर का वर्चस्व था। ताई की निजी सचिव वंदना के पति वसंत म्हस्कर, विकास पुंडलिक, स्व. सुरेश लोखंडे, चंद्रकांत करमरकर, मोहन कर्पे, स्व. शंकर गिरी, रवींद्र देशपांडे, अभय गद्रे, शांतनु किबे, शोभा तेलंग पूर्व पार्षद स्मिता हार्डिकर और अनघा गोरे संचालक थे। 1997 से 2004 प्रदेश में भाजपा को सत्ता थी। ताई सांसद के साथ ही भाजपा की राष्ट्रीय महामंत्री थी। बैंक के घोटाले की खबर जब देश की शीर्षस्थ पत्रिका इडिया टुडे में छपने से उनका वह पद भी गया था। घड़वईवाले ने बताया कि बैंक में हुए अनेक घोटालों की जांच में मिलिंद दोषी साबित हुए है। लेकिन लीपापोती कर दी गयी। लिफ्ट घोटाले में भी मिलिंद के विरुद्ध सहकारिता न्यायलय में वसूली प्रकरण विचाराधीन है। बैंक में घाटे के बावजूद मिलिंद – डबीर की टीम ने मनमानी पूर्ण अनुदान बांटा। मिलिंद बैंक संचालक रहते ही बैंक को वर्ष 2002-03 में 15,46,88,625 और 2003-2004 में 22,89,66,650 की हानि हुई थी। उसी दौरान मिलिंद लगातार 5 बोर्ड मीटिंग में अनुपस्थित रहे। उस कारण वे संचालक नहीं रहे। ताई कहलो रही कि मिलिंद ने कुछ भी नहीं किया। उसने तो संचालक पद छोड़ दिया था। आज तक डूब चुकी महाराष्ट्र बाह्मण सह. बैंक के निर्दोष तेरह सौ डिपोझिटर्स में से लगभग 650 डिपोझिटर्स अपनी खून-पसीने की जमा पूंजी वापस मिलने की आस में स्वर्ग सिधार चुके है। शेष के हालात भी बेहद खस्ता है। ताई अपने बेटे मिलिंद को टिकट दिलाने के लिए प्रयास कर ही हैं। घड़वईवाले का कहना है कि भाजपा को इस पर कतई विचार नहीं करना चाहिए।

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