लोक कल्याणकारी पत्रकार थे देवर्षि नारद

इंदौर : देवर्षि नारद ब्रह्माण्ड के पहले पत्रकार थे। हमने नारद के चरित्र का हमेशा गलत और विसंगति पूर्ण चित्रण किया। फिल्मों में उन्हें मसखरे के बतौर पेश किया गया जबकि नारद का हर काम लोक कल्याण के लिए होता था। ये विचार देवर्षि नारद जयंती पर आयोजित परिचर्चा में वक्ताओं ने व्यक्त किए। जीएसआईटीएस के गोल्डन जुबिली ऑडिटोरियम में रखी गई इस परिचर्चा का विषय था ‘पत्रकारिता के सर्वकालिक इतिहास के पुनर्लेखन की आवश्यकता’ आयोजक थे विश्व संवाद केंद्र और पत्रकारिता विभाग देवी अहिल्या विवि।

हम आत्महीनता के बोध से ग्रस्त हैं।
परिचर्चा में मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए वरिष्ठ पत्रकार रमण रावल ने कहा कि आज भी हम आत्महीनता के बोध से ग्रस्त हैं। हमारे आराध्य, साहित्य, संस्कृति और गौरवम्यी इतिहास पर गर्व करने से हम बचते हैं। अपनी विरासत के प्रति इस उपेक्षित सोच ने ही हमें आक्रमणकारियों का गुलाम बनाया। मुठ्ठीभर लोग हम पर बरसों तक राज करते रहे। वह हमारी आत्म हीनता का ही परिणाम था। आजादी के बाद बनी सरकारों ने भी कभी राष्ट्रवादी सोच को पनपने नहीं दिया पर अब हालात बदल रहे हैं। लोग अपनी विरासत और प्रतीकों के प्रति जागरूक हो रहे हैं। रमण रावल ने कहा कि देवर्षि नारद का चित्रण हमेशा नकारात्मक ढंग से किया गया जबकि वे तीनों लोक में घूमकर सूचनाओं का आदान – प्रदान करते थे। उन्होंने हमेशा सच का साथ दिया। इसीलिए देव, दानव, किन्नर, गंधर्व सभी उनका सम्मान करते थे। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया में बहुत सारी गैरजरूरी सामग्री रहती है पर उसी सोशल मीडिया ने हमें अपनी विरासत और ऐतिहासिक धरोहरों से भी रूबरू कराया है, जिनके बारे में हमें जानकारी ही नहीं थी।

लोक कल्याण को प्राथमिकता देते थे देवर्षि नारद।
मुख्य अतिथि क्रिकेट कमेंटेटर सुशील दोषी ने कहा कि देवर्षि नारद का लक्ष्य हमेशा लोक कल्याण का रहा। उन्हें हमेशा जनमानस में चुगलखोर के रूप में प्रचारित किया गया जबकि वे नारायण के भक्त थे और सही बात को सही समय पर कहते थे। सुशील दोषी ने कहा कि हम विदेशियों के मुकाबले खुद को कमतर आंकते हैं, यह गलत है। हमें अपनी संस्कृति, विरासत और सभ्यता पर गर्व होना चाहिए।उन्होंने कहा कि पत्रकारिता के इतिहास का पुनर्मूल्यांकन होना चाहिए ताकि गलत धारणाओं को तिलांजलि देकर सही तथ्यों को सामने लाया जा सके।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे पूर्व कुलपति डॉ. मानसिंह परमार ने देवर्षि नारद से लेकर वर्तमान पत्रकारिता के दौर की तुलनात्मक विवेचना करते हुए कहा कि कई गलत मान्यताएं और विचार हम बरसों से आगे बढ़ाते चले आ रहे हैं जबकि जरूरत उन्हें बदलने की है ताकि सही तस्वीर लोगों के समक्ष आ सके। उन्होंने पत्रकारिता में आई गिरावट को रेखांकित करते हुए कहा कि आजादी के पहले पत्रकारिता मिशन हुआ करती थी, अब प्रोफेशन बन गई है। हमें इस बारे में आत्मचिंतन की जरूरत है।

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