मिर्जापुर 2

पहले एक चर्चा
काले कपड़े कैसे खादी की आड़ में सफेदपोश हो जाती है,
शतरंज का पूरा खेल राजा अपने सिपाहियों पर लड़ता है लेकिन रानी की एक चाल पूरी बाजी पलट देती हैं,
अपराध और राजनीति कैसे अठखेलियों करती है भारत मे, इन्ही मुद्दों को धीमें से दर्शाती है सीरीज, यह एक संजीदा सवाल है न कि मात्र मनोरंजन और फ़िल्म ????
जातिवाद भारत से कभी खत्म न होगा जो कि देश का चुनावी ईंधन था है और रहेगा,,, ??

सीरीज पर आते है :-
एमेजन प्राइम पर कूल 10 एपिसोड जो कि हर एपिसोड 40 से 50 मिंट
घर वालो से छिपकर कानो में ध्वनि यंत्र डाल कर गालियों को सुनने का सुख मिलने वाला है,
कहानी पहले भाग से ही आगे बडाई गई है
यानी झोपड़ी वाले चाचा के ठुमको के बाद कि तबाही से आगे बडाई गई हैं, पंडित परिवार के गुड्डू, बबलू, स्वीटी के पेट मे पल रहे बच्चे की जान लेने से आगे बड़ाई गई हैं
त्रिपाठी परिवार के मुन्ना भइया जीवित बच गए है और वह अपनी काबिलियत साबित कर मिर्ज़ापुर की कुर्सी पर बैठना चाहते है, साथ ही गुड्डू पंडित की लाश भी देखना चाहते है
इधर गुड्डू भइया साँसे तो ले रहे है लेकिन ज़िन्दगी और मौत के बीच मे झूल रहे है, भाई बबलू और पत्नी की कुर्बानी के बाद गुड्डू डिम्पी और गोलू के कंधों के सहारे ज़िंदा है लेकिन वह खून का बदला खून से लेने के लिए बैचेनी के साथ लगे हुवे है
इधर कालीन भैया डॉन से खादी पोश के सहारे आगे बढ़ने में लगे है, क्योकि मुन्ना को कानून से बचना भी मुद्दा है,
कहानी में एक नया ट्विस्ट है हिंदी के प्राध्यापक रति शुक्ला के पुत्र शरद शुक्ला जोनपुर में बैठकर मिर्जापुर की कुर्सी अपने पिता को श्रद्धांजलि स्वरूप भेंट करना चाहते है,
पंडित- त्रिपाठी- शुक्ला के खेल में साँसे किसकी बचेगी
किसकी थमेगी
कौन इतिहास के पन्नो में मर कर दर्ज होगा,
या वफादारी और गद्दारी में से कोई एक जितेगा,
इस बार बन्दूको के अलावा खादी और नशा भी साथ में होगा
सीरीज में बांटो और राज करो
दुश्मन का दुश्मन दोस्त पर भी काम किया गया है
सीरीज की शुरूआत काले बिच्छू से होना और कालीन भईया के काले कपड़ो का मद्धम मद्धम खादी में तब्दील होने भी अच्छा लगा है, राजनीतिक पाँसे बड़ी चतुराई से फैंके गए है जो आपको बांधे रखेगे,
पटकथा पर खास ध्यान दिया गया है जो कि लाजवाब है
एक सँवाद
जो मर जाते है उनका उतना दुख नही होता
जितना दुख जो पीछे बच जाते है उन्हें देख कर होता है,,
सीरीज में त्रिपाठी परिवार में आंख मिचौली भी देखने को मिलेगी जहाँ डिस्करी चेनल के शौकीन बाबूजी और बहू बीना की आंख मिचौली हो या गोलू पर गुड्डू का हक जताने वाले एंगल या मकबूल और बाबर की वफ़ादारी की जंग
नारी शक्ति और उत्थान जैसे नारे सीरीज आपको बखूबी समझा देगी,और नारी शक्ति से परिचय भी करा देगी,,,
शतरंज का पूरा खेल राजा अपने सिपाहियों पर लड़ता है लेकिन रानी की एक चाल पूरी बाजी पलट देती हैं, ठीक वैसे ही मिर्ज़ापुर की नागिने राजा को डंक मार कर तख्ता पलटने का हुनर छिपाए बैठी है,
अदाकारी
अली फैजल (गुड्डू) के किरदार और देवेंदु शर्मा (मुन्ना) के किरदार को सजीव कर रख दिया है,
पंकज त्रिपाठी (कालीन भैया) अभीनय के भीष्म बनने की राह पर है, श्वेता त्रिपाठी(गोलू) के किरदार से न्याय करती दिखी, रसिका दुग्गल ने जिस अंदाज निजी नज़रों और बन्द जुबान से बहू बीना के किरदार को नए अयाम दिए वह बॉलीवुड में दस्तक बन जाएगी, अमित स्याल पोलिस वाले मौर्या के किरदार में जान डाल दिये है ईशा तलवार और प्रियांशु भी दिल जीत लेंगे, विजय वर्मा भी बिहारी किरदार को गढ़ने में सफल रहे है,, लिलिपुट फारूकी भी छोटे परन्तु असरकारक लगे है
इन सब के बीच एक चेहरा इंदौर से रोहित तिवारी (मुख्यमंत्री पीए) भी रहे जो सावधान इंडिया से होते हुवे मिर्जापुर में दिखे है जो उनकी रंगकर्म को समर्पण की गाथा गा रही थी
कूल मिलाकर निर्देशक ने हर किरदार से बखूबी काम लिया है,
सीजन 2 दिवाली के उस अनार की तरह साबित होगी जब तक अनार जलेगा तब तक बाकी पटाखे फीके पड़े रहेगे,
सीजन 3 के लिए पहेली और मार्ग छोड़ दी गई है, सीजन 3 आना तय है,
क्योकि सीरीज में अभी तक अपराधियो का सफाया हुवा हैन कि अपराध का,

अंत मे :-
सीजन 1 खरगोश की तरह दौड़ा था पर सीजन 2 कछुए की तरह चला परन्तु अंत देख कर यह आठ घण्टे अखरते नही है,

फ़िल्म समीक्षक
इदरिस खत्री

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