क्या कान सिर्फ प्रशंसा ही सुनने के लिए हैं !

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कीर्ति राणा

प्रधानमंत्री पटना विश्वविद्यालय के शताब्दी समारोह में कल शामिल होंगे लेकिन यहां के पूर्व छात्र यशवंत सिंहा और शत्रुघ्न सिंहा इस जलसे में आमंत्रित नहीं हैं। कारण सर्वज्ञात है कि यशवंत सिंहा इन दिनों भाजपा में विपक्ष की भूमिका में हैं। उनके निशाने पर कभी मोदी, कभी अरुण जेटली, कभी अमित शाह और उनके पुत्र जय शाह तो कभी सरकार के तीन साल निशाने पर रहते हैं। यशवंत के बोल वचन का शॉटगन सिन्हा नमक मिर्च लगाकर समर्थन कर रहे हैं। इन्हीं सारे कारणों से ये दोनों पूर्व छात्र आमंत्रित नहीं किए गए हैं।क्या देश-विदेश में प्रशंसा सुनते रहने के कारण साहब के कान इतने अभ्यस्त हो गए हैं कि भाजपा में तेजी से पैर फैलाते ‘विपक्ष’की आलोचना सुनना ही नहीं चाहते।

विरोधी-दुश्मन देश पाकिस्तान के तत्कालीन पीएम नवाज शरीफ द्वारा निमंत्रित नहीं करने के बाद भी उनके निवास पर जाने की उदारता दिखाने वाले पीएम मोदी ने पटना विवि प्रशासन को तो कहा नहीं होगा कि ये दोनों मेरा विरोध कर रहे हैं इसलिए मैं तभी आऊंगा जब आप इन दोनों को न बुलाएं। बहुत संभव है कि खुद आयोजकों ने ही विवाद से बचने के लिए यह निर्णय लिया हो।

इन दिनों जो राजनीतिक परिदृश्य बन रहा है उससे और आभासी दुनिया पर डाली जाने वाली पोस्ट पर कमेंट वॉर से तो यही आभास होने लगा है कि ‘निंदक नियरे राखिए..’ जैसी सीख का कोई मतलब नहीं है। संसद और विधानसभा में या तो विपक्ष है नहीं या हृदय परिवर्तन की जो बयार चल रही है उससे विरोधी भी सत्ता पक्ष की राह पकड़ने को आतुर है। जब विपक्ष के लोग भी सत्ता पक्ष का हिस्सा बन जाएगा तो विरोध में कौन बोलेगा। विपक्ष-विरोध के स्वर को समाप्त करने की यह राजनीति हाल के वर्षों में तेजी से पनपी है। एक जमाना नेहरू-इंदिरा वाला भी रहा है जब विपक्ष के दमदार नेताओं को संसद में लाने की उदारता सत्ता पक्ष दिखाता था।

विरोधियों की आवाज को गुणगान में बदलने की कारीगरी है तो अच्छी लेकिन जब अपने ही लोग विरोध की भाषा बोलने लगें तो? यह वही स्थिति है, परिवार में भी जब बाकी को सुनने की अपेक्षा अपनी मर्जी, अपने फैसले थोपे जाने की प्रवृति बढ़ने लगती है तो परिवार का ही कोई सदस्य बगावत का झंडा लेकर खड़ा हो जाता है।यह भी संयोग है कि मोदी सरकार के खिलाफ भी उसी बिहार से आवाज बुलंद हुई है जहां से इंदिरा गांधी के आपात्तकाल के खिलाफ जेपी ने शुरुआत की थी। मोदी भ्रष्ट नहीं हैं, देश को विश्वगुरु बनाने की दिशा में काम भी कर रहे हैं, टीम के बाकी साथियों पर भी उन्हें भरोसा है।सरकार के गठन में सारे ही लोगों को खुश नहीं किया जा सकता लेकिन सबके विचार-सुझाव को तो सुना जा सकता है। विरोध तब ही विस्फोटक रूप लेता है जब उसकी सतत अनदेखी की जाए।सत्तर पार के मार्गदर्शक मंडल में भेजे जाएं, बाकी जो अपनी बात कहना चाहें उन्हें मेल मुलाकात के लायक भी न समझा जाए तो ऐसे ही हालात बनेंगे। वो वक्त और था जब मीडिया मैनेजमेंट से काम चल जाता था, अब भी ऐसे उदारमना मीडिया हॉउस की कमी नहीं है लेकिन सोशल नेटवर्किंग पर बात कहने से किसे और कैसे रोका जा सकता है। जिस माध्यम ने सत्ता तक पहुंचने की राह आसान की वही माध्यम अब नाक में दम करने का हथियार बन रहा है।

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