मेरे मन की, पिता के मन की,
सारे भावों को जान लेती है।
ज़िन्दगी को मुद्दत से देखती आई है,
हर दुख-दर्द को सहती आई है।
अपने ऊपर हर कष्ट लेकर,
आँचल का छाँव देती आई है॥
मेरी दादी माँ, मेरे और मेरे पिता के,
संग संग हर पल, हर वक़्त रहती है॥
मेरे मन की, पिता के मन की,
सारे भावों को जान लेती है।
ज़िन्दगी को मुद्दत से देखती आई है,
हर दुख-दर्द को सहती आई है।
अपने ऊपर हर कष्ट लेकर,
आँचल का छाँव देती आई है॥
मेरी दादी माँ, मेरे और मेरे पिता के,
संग संग हर पल, हर वक़्त रहती है॥
मंत्री मंडल बनने से पहले की रात कई “माननीयों” पर भारी रही। जब तक नामों की पोटली नहीं खुली थी, उम्मीद ज़िंदा थी। तब नींद में गुनगुनाया करते थे, “शब-ए-इंतेज़ार”…
एक 6 साल का छोटा सा बच्चा अक्सर भगवान से मिलने की जिद्द किया करता था। उसकी अभिलाषा थी, कि एक समय की रोटी वह भगवान के साथ खाए… एक…