यह सवाल कई दिन से मेरे मन में चल रहा है,
जो कल तक दिल में था आज क्यों बदल रहा है,
जो मेरे विचारों का सूरज था आज क्यों ढल रहा है,
दुश्मनी पे क्यों उतारू है जानने को दिल मचल रहा है,
दिल का आइना देखा तो जान पाया कि.
वोह तो किसी और के सांचे में ढल रहा है,
बस चन्द सिक्के दौलत के न जुटा पाया मैं,
तो किसी दौलतमंद के लिए राह बदल रहा है!
जब दिल ही टूट गया
मंत्री मंडल बनने से पहले की रात कई “माननीयों” पर भारी रही। जब तक नामों की पोटली नहीं खुली थी, उम्मीद ज़िंदा थी। तब नींद में गुनगुनाया करते थे, “शब-ए-इंतेज़ार”…





