शौचालय के लिए जो जितने अधिक गड्ढे खोदे उसे मिले श्रेष्ठ शिक्षक का सम्मान !

गांवों में तो आज भी माट्साब ही कहा जाता है जो सुधर कर शहरों में आते आते मास्टर हो जाता है। वैसे तो यह अंग्रेजी का शब्द है जिसका आसान हिंदी तर्जुमा शिक्षक समझा जाता है, टीचर का अर्थ भी यही मान लिया जाता है। पन्ना सीईओ ने तो मास्टर का यही अर्थ समझा है जो हर काम में महारत रखता है।

पन्ना जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी ने गांव के माट साब से लेकर शहर के टीचरों तक को एक और नए दायित्व से जोड़ने की सरकार को राह दिखाई है। पन्ना में सरकारी स्कूलों के अध्यापकों को अब शौचालयों के लिए गड्ढे खोदने का काम भी करना होगा। बस यही काम बचा था जिसमें उन्हें महारत नहीं थी बाकी तो चार बूंद जिंदगी की पिलाने से लेकर मध्याह्न भोजन बनवाने, विवाह भोज के एठवाड़े, दोने-पत्तल की गंदगी को स्कूल मैदान से साफ कराने, टूटे दरवाजों वाले स्कूल कमरों से शराब की खाली बोतलें फिकवाने, सरकार द्वारा प्रायोजित सामूहिक विवाह आयोजनों में दिव्यांग जोड़े तलाशने, बारातियों को भोजन परोसने, प्याज बंटवाने, मतदाता परिचय पत्र, जनगणना करने आदि आदि काम कर ही रहे थे, इसके साथ वेतनमान में वृद्धी जैसे आंदोलन अलग। शायद ही ऐसा कोई काम बचा हो जिसमें शिक्षकों का हाथ न लगा हो।

यदि अध्यापकों से शौचालयों के लिए गड्डे खुदवाना चाहते हैं तो गलत क्या है। केंद्र सरकार शहरों वाले इंडिया को न्यू इंडिया बनाना चाहती है लेकिन गांधीजी तो मानते रहे हैं कि भारत की आत्मा गांवों में बसती है। उन सारे गांवों में जब हमारे माट् साब के हाथों से खोदे गड्ढे में हाजत के लिए गांव की युवा पौध जाएगी तो उसके विचार भी परिष्कृत होंगे। इतिहास गवाह है कि कई लेखकों-विचारकों-चिंतकों को शौचालय में बैठे बैठे ही अनूठे विचार आते हैं और इन विचारों का विश्व लोहा भी मानता है।

मां के बाद मास्टर को ही तो संस्कारदाता माना जाता है तो एक तरह से मास्टर के खोदे गड्डे में गांव के बच्चे जब पेट साफ करने बैठेंगे तभी तो उसके मन में स्कूल चलें हम का विचार कौंधेगा। शिक्षकों को गड्ढे खुदाई काम में जोतने का जिस अधिकारी ने यह नवाचार सुझाया है उसके दिमाग की दाद देना चाहिए कि ‘स्कूल चले हम’ अभियान को सीधे शौचालय के गड्ढे से जोड़ दिया। मास्टरजी रात के अंधेरे में तो गड्ढे खोदने जाएंगे नहीं, दिन में जाएंगे, गांव वाले भी आवभगत करेंगे, मास्टरजी भी चाय-पानी के दौरान पता कर लेंगे गांव के कितने बच्चे स्कूल जाने से बचे हुए हैं। कुछ प्रेरणा मास्टर जी से मिलेगी और कुछ उनके खोदे गड्ढे में मल वर्षा करके विचार कौंधेगा कि जिस मास्टर ने हमारे गांव में आकर हमारे मलदान के लिंए इतना कुछ किया तो क्यों न उससे शिक्षा का दान भी ग्रहण करें।

शिक्षा मंत्री को तो एक तरह से आभार मानना चाहिए कि सरकार के उस कारिंदे ने शिक्षकों में गड्ढे खोदने की प्रतिभा को खोज निकाला है। सरकार को भी अध्यापक बिरादरी का एहसानमंद होना चाहिए कि सरकार की तमाम कल्याणकारी योजनाएं इस बिरादरी के अहर्निश सहयोग से आमजन के लिए लाभकारी साबित हो रही हैं।शिक्षकों को गर्व होना चाहिए कि कम से कम उनकी जमात का प्रतिनिधित्व करने वाले डा. राधाकृष्णन तब राष्ट्रपति बन गए। यदि आज वो होते तो इस सरकार के फरमान को पूरा करते पन्ना के किसी गांव में गेती फावड़ा लेकर खोदे गए गड्ढे के साथ सेल्फी लेकर विभाग के सचिव आयएएस को भेज रहे होते।

राज्य और केंद्र सरकार हर साल शिक्षकों को सम्मानित करती रही है और शायद ही कोई वर्ष ऐसा गया हो जब उस साल राष्ट्रपति के हाथों सम्मानित शिक्षकों के चयन पर अंगुली न उठी हो। जब जिसकी सरकार, जो जिस मंत्री का खास वह सम्मान पा जाता है। मोदी से पहले हर योजना को मप्र में लागू करने में उतावले सीएम को पन्ना सीईओ से प्रेरणा लेकर यह घोषणा तो कर ही देना चाहिए कि अगले वर्ष वे ही शिक्षक राज्य स्तरीय सम्मान के योग्य माने जाएंगे जो अपनी पंचायत क्षेत्रों में शौचालयों के लिए सर्वाधिक गड्ढे खोदेंगे। ऐसी घोषणा से होगा यह कि शिक्षक ज्यादातर समय गड्ढा खोदो अभियान में लगे रहेंगे और सरकार पर यह आरोप भी नहीं लगेगा कि सरकारी स्कूलों में पढ़ाई नहीं होने से शिक्षा का स्तर गड्ढे में जा रहा है। सरकार को भी सरकारी स्कूल समाप्त कर निजी क्षेत्र के हाथों में शिक्षा सौंपने का मौका मिल जाएगा।

IDS Live - News & Infotainment Web Channel
कीर्ति राणा

मुझे लगता है ये जितने भी आयएएस, आयपीएस वगैरह हैं इन्हें पढ़ाने-गढ़ने वाले शिक्षक किसी दूसरे ग्रह से आते होंगे। तभी पन्ना जिला पंचायत सीईओ के मन में सरकारी स्कूलों के अध्यापकों से गड्ढे खुदवाने का नेक विचार आया। सरकार यदि इस आदेश को रद्द कर दे तो भी कम से कम इस सीईओ का नवाचार के लिए सम्मान तो करना ही चाहिए । वैसे भी घोषणा करके-चेतावनी देकर भूलने वाली सरकार के मुखिया, अधिकारियों के संरक्षक सीएस को कहां याद होगा कि उल्टा टांगने की धमकी भी दी थी।याद रहा होता तो शिक्षकों से शौचालयों के लिए गड्ढे खुदवाने का फरमान जारी करने वाले सीईओ के अब तक तो पर कतर दिए होते।

Related Posts

जब दिल ही टूट गया

मंत्री मंडल बनने से पहले की रात कई “माननीयों” पर भारी रही। जब तक नामों की पोटली नहीं खुली थी, उम्मीद ज़िंदा थी। तब नींद में गुनगुनाया करते थे, “शब-ए-इंतेज़ार”…

भगवान के साथ रोटी

एक 6 साल का छोटा सा बच्चा अक्सर भगवान से मिलने की जिद्द किया करता था। उसकी अभिलाषा थी, कि एक समय की रोटी वह भगवान के साथ खाए… एक…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You Missed

इंदौर के इतिहास में पहली बार कांग्रेस प्रत्याशी ने चुनाव मैदान छोड़ा

  • By admin
  • April 30, 2024
  • 395 views
इंदौर के इतिहास में पहली बार कांग्रेस प्रत्याशी ने चुनाव मैदान छोड़ा

मध्य प्रदेश में बना दुनिया का सबसे ऊंचा जैन मंदिर

  • By admin
  • April 29, 2024
  • 495 views
मध्य प्रदेश में बना दुनिया का सबसे ऊंचा जैन मंदिर

महाकाल मंदिर में शुल्क देकर भी शीघ्र दर्शन नहीं कर सकेंगे

  • By admin
  • December 27, 2023
  • 472 views
महाकाल मंदिर में शुल्क देकर भी शीघ्र दर्शन नहीं कर सकेंगे

जब दिल ही टूट गया

  • By admin
  • December 27, 2023
  • 484 views

चार वेद, जानिए किस वेद में क्या है….?

  • By admin
  • December 21, 2023
  • 519 views
चार वेद, जानिए किस वेद में क्या है….?

भगवान के साथ रोटी

  • By admin
  • December 21, 2023
  • 383 views
भगवान के साथ रोटी