इंदौर के नमकीन उद्योग को 200 करोड़ रुपये की चपत

दुनिया मेें अपने स्वाद के लिये विख्यात इंदौर का नमकीन उद्योग प्रतिदिन 5 करोड़ रुपये का नुकसान उठा रहा है। साथ ही अचनाक की गई तालाबंदी से तैयार माल से लेकर तो कच्चे माल तक का स्टॉक रखा रहने से 50 करोड़ का न्यूनतम सीधा नुकसान भी हुआ है। कोरोना से तालाबंदी के कारण काम-धंधों को जो भारी भरकम नुकसान हो रहा है, यह उसकी हलकी-सी झलक भर है। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि इंदौर, प्रदेश और देश में कारोबार पूरी तरह से ठप होने के चलते कितना जबरदस्त घाटा हो रहा है। यह अंतत: देश की अर्थ व्यवस्था के पहियों को जाम कर रहा है। बहरहाल ।

इंदौर का जिक्र कहीं भी आता है तो यकीनन पहले उल्लेख नमकीन का होता है। यह इस शहर का प्रमुख कारोबार है। इसे कुटीर से लेकर तो बड़े कारखाने तक से संचालित किया जा रहा है। इंदौर की तासीर है कि जिस तरफ नजर घुमाओ, उस तरफ नमकीन की दुकान नजर आ जाती है और जहां तक नजर जाती है, वहां तक ये दिख जाती हैं। जिस मालवा की पहचान कभी डग-डग रोटी, पग-पग नीर हुआ करता था, वह अब नमकीन से पहचाना जाता है। इंदौर के साथ रतलाम और उज्जैन भी नमकीन के लिये प्रतिष्ठा प्राप्त हैं।

इस तरह के किसी भी कारोबार की प्रकृति संगठित और असंगठित क्षेत्र में समान दखल की होती है। इंदौर में पिछले बीस साल में नमकीन कारोबार कुछ दुकानों से निकलकर कुटीर और भारी उद्योग की शक्ल ले चुका है। यहां संगठित क्षेत्र में करीब सौ इकाइयां कार्यरत हैं। इनमें से कुछ संचालकों की करीब 250 खुदरा दुकानेें भी हैं। एक अनुमान के मुताबिक संगठित क्षेत्र में रोजाना सौ टन(एक लाख किलो) नमकीन बनता है। इसमें से प्रतिदिन करीब 25 टन माल की खपत इंदौर में होती है, शेष देश भर के बाजार में पहुंचता है। इंदौरी नमकीन औसत डेढ़ सौ रुपये किलो होता है।

इसी तरह से नमकीन के असंगठित क्षेत्र का दखल संगठित से ज्यादा है, जो किसी भी कारोबार का अहम हिस्सा होता ही है। असंगठित क्षेत्र में वे कारोबारी आते हैं, जो घर, खोमचे,ठेले से अपना करोबार करते हैं। इसमें वे भी शरीक हैं, जिनका बड़ा नाम नहीं होता है, लेकिन व्यापार बड़े पैमाने पर करते हैं। वे खुद के लिये माल बनाने के अलावा दूसरे दुकानदारों, थोक कारोबारियों के लिये भी माल बनाते हैं और उनके नाम से पैक कर देते हैं। इस माल की खपत शहर की पिछड़ी,गरीब बस्तियों और ग्रामीण क्षेत्र में होती है। इस असंगठित क्षेत्र में 200 टन रोज के उत्पादन की संभावना है। यह माल भी 50 टन के करीब शहर में बिककर बचा हुआ बाहर भेज दिया जाता है।

इंदौर मेें संगठित व असंगठित क्षेत्र के मिलाकर करीब 600 कारखाने हैं, जिनमें कुल 300 टन माल प्रतिदिन तैयार होता है। शहर में छोटी-बड़ी करीब 4 हजार दुकानें नमकीन की हैं। कभी कपड़ा बाजार के लिये देश-दुनिया में नाम कमाने वाला इंदौर दशकों से नमकीन से दुनिया को अपना कायल बना रहा है । इंदौर से बाहर कोई भी घूमने या रिश्तेदारी में जाने वाला नमकीन जरूर साथ ले जाता है तो इंदौर आने पर मेहमान को नमकीन जरूर भेंट किया जाता है। जो इंदौरी विदेश में बसे हैं , वे यहां आने पर साल,छह महीने का नमकीन साथ ले जाते हैं। वे इसे रेफ्रिजरेटर में रखकर किफायत के साथ खाते हैं। देश में 20 हजार करोड़ रुपये का नमकीन कारोबार है, जिसमें से अकेले इंदौर का योगदान10 प्रतिशत का है। दो हजार करोड़ का नमकीन उद्योग कोरोना के शिकंजे तले छटपटा रहा है, क्योंकि खाद्य वस्तु होने के कराण इसे ज्यादा समय तक रखा नहीं जा सकता।

तालाबंदी लागू होने से औसत सात दिन का स्टॉक दुकानों, कारखानों पर ही रखा रह गया। ताजा स्थिति के अनुसार यदि 17-18 मई को भी तालाबंदी खुल जाये तब भी तेल, दालें, बेसन,मसाले आदि दो माह तक पड़े रहने के कारण कम ही काम आ पायेंगे। यह नुकसान 50 करोड़ रुपये के करीब आंका जा रहा है। शासन-प्रशासन ने तैयार नमकीन की बिक्री के लिये सवा महीना बित जाने के बावजूद कोई दिशा-निर्देश जारी नहीं किये, जिससे रखा माल तो खराब ही होना है।

इस बारे में मप्र नमकीन मिठाई एसोसिएशन के सचिव अनुराग बोथरा ने कहा कि तालाबंदी देश के लिये अनिवार्य थी, इसमें कोई दो राय नहीं , लेकिन सरकार ने एकाध हफ्ते बाद कम से कम खाद्य उद्योग के बारे में कुछ ऐसी व्यवस्था करना थी, जिससे तैयार माल की खपत कर दी जाती । अब नमकीन जैसे उद्योग को उबारने के लिये किसी पैकेज की घोषणा की जाना चाहिये। साथ ही नमकीन के सीमित कारोबार की अनुमति तो दी ही जाना चाहिये। बोथरा ने बताया कि इंदौर में नमकीन कारोबार से करीब एक लाख परिवार जुड़ेे हैं। ये सिर्फ नमकीन व्यापारी नहीं, बल्कि कारीगर, मजदूर, सेल्समैन, मार्केटिंग स्टाफ, लोडिंग,परिवहन, फुटकर विक्रेता,ग्रामीण खेरची दुकानदार, दाल, बेसन, तेल, मसाले वाले, पैकिंग इंडस्ट्री वाले,चक्की वाले जैसी लंबी श्रृखंला है। ये ऐसे लोग हैं, जिनका सारा दारोमदार नमकीन-मिठाई कारोबार पर है। 25 अप्रैल से इस कारोबार को पूरी तरह बंद कर देने से एक लाख परिवार के लोग घोर संकट में हैं। शासन-प्रशासन को चाहिये कि किराना, सब्जी, ,दूध वितरण के साथ नमकीन वितरण भी प्रारंभ करे। सीधे नमकीन कारोबारियों को व्यापार की छूट भले न दें, लेकिन किराना चैन से इसे जोड़ सकते हैं। इससे थोड़ा बहुत तैयार नमकीन भी खप जायेगा, जिसकी मियाद दो माह की होती है और कच्चे माल का उपयोग भी हो सकेगा। इसे प्रारंभ करने से थोड़ा बहुत रोजगार भी चालू हो सकेगा और कारोबारी को अपना अस्तित्व बनाये रखने में मदद मिलेगी।

साभार :- रमण रावल, वरिष्ठ पत्रकार
  • Related Posts

    जब दिल ही टूट गया

    मंत्री मंडल बनने से पहले की रात कई “माननीयों” पर भारी रही। जब तक नामों की पोटली नहीं खुली थी, उम्मीद ज़िंदा थी। तब नींद में गुनगुनाया करते थे, “शब-ए-इंतेज़ार”…

    भगवान के साथ रोटी

    एक 6 साल का छोटा सा बच्चा अक्सर भगवान से मिलने की जिद्द किया करता था। उसकी अभिलाषा थी, कि एक समय की रोटी वह भगवान के साथ खाए… एक…

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    You Missed

    इंदौर के इतिहास में पहली बार कांग्रेस प्रत्याशी ने चुनाव मैदान छोड़ा

    • By admin
    • April 30, 2024
    • 395 views
    इंदौर के इतिहास में पहली बार कांग्रेस प्रत्याशी ने चुनाव मैदान छोड़ा

    मध्य प्रदेश में बना दुनिया का सबसे ऊंचा जैन मंदिर

    • By admin
    • April 29, 2024
    • 495 views
    मध्य प्रदेश में बना दुनिया का सबसे ऊंचा जैन मंदिर

    महाकाल मंदिर में शुल्क देकर भी शीघ्र दर्शन नहीं कर सकेंगे

    • By admin
    • December 27, 2023
    • 472 views
    महाकाल मंदिर में शुल्क देकर भी शीघ्र दर्शन नहीं कर सकेंगे

    जब दिल ही टूट गया

    • By admin
    • December 27, 2023
    • 484 views

    चार वेद, जानिए किस वेद में क्या है….?

    • By admin
    • December 21, 2023
    • 519 views
    चार वेद, जानिए किस वेद में क्या है….?

    भगवान के साथ रोटी

    • By admin
    • December 21, 2023
    • 383 views
    भगवान के साथ रोटी