महारात्रि पर कल शहर अलग रंग में दिखा ! कल पता नहीं कितने बेशुमार स्थानों पर सैकड़ों टन साबूदाना घन्टों में फुर्र हो गया ! जिधर देखो, उधर खिचड़ी ! असल में प्रसाद !
आजकल इस दिन यानी महाशिवरात्रि पर, सरकारी भांग घोटा स्थलों यानी ठेकों पर भाँगप्रेमियों के साथ लूट होती है ! वहां इस दिन सिर्फ ठंडाई में छनी भांग दी जाती है, जो कि सोने से गढ़ावन महंगी वाला मामला होता है। जाहिर है नींबू-नमक और शिकंजी में छानने वाले प्रताड़ित होते हैं, कलपते हैं। जी हां, शासन शिव का है, लेकिन महिमा आशुतोष की है। ऐसे ही कुछ जगहों पर खिचड़ी वितरण से यातायात में लोचा आता है। हां, इसमें कोई शक नहीं कि पिछले कुछ बरसों में इस दिन मंदिरों में विशेष आयोजन और दर्शनार्थियों की संख्या में काफी और उत्साही इजाफा हुआ है। साफ बात यह है कि महाशिवरात्रि शहर का एक बड़ा पर्व बन चुका है और इसके और बड़ा होने की आईन्दा खूब संभावना है।
बहरहाल यह महाशिवरात्रि अपने लिए थोड़ी जुदा, बल्कि बहुत खास रही। जी हां, कल रात पारिवारिक मित्र डॉक्टर मनोहर धवन जी के यहां सुंदरकांड का आयोजन हुआ। अन्नपूर्णा थाने के ठीक बगल से भीतर जाते कॉलोनी के रास्ते पर दूसरे छोर पर उनका निवास है। वहां मुकेरीपुरा हनुमान मंदिर की मंडली ‘मंगल भवन अमंगल हारी’ में पूरे मनोयोग से लगी थी। जिंदगी में यह पहली बार था जब अपन ने सुंदरकांड का महाशिवरात्रि की रात आनंद लिया ! इसके पहले अन्य दिनों में सुंदरकांड को कई दफे सुना। सो दोस्तों, पाया है कि सुंदरकांड में कुछ तो खास यकीनन है।
दरअसल सुंदरकांड क्या है ? रामायण का एक हिस्सा। उसकी कुछ चौपाइयां और दोहे आदि। लेकिन कमाल उन्हीं चौपाइयों और दोहों आदि की भाषा और उसके विशिष्ट ‘व्याकरण’ का है ! बरसों से सुनते आ रहे है कि रामायण एक कथा है, राम कथा। जो कही जाती है। हकीकत यह है कि रामायण सदियों से, जी हां सदियों से, गायी जाती चली आ रही है ! किसी कथा को कहना अलग बात है और गाना उससे बिलकुल अलग ! हालांकि ऐसी कहन और लेखन को सदियों से कहा भी जा रहा है और गाया भी जा रहा है तो उसकी गढ़न कमाल नहीं तो और क्या होगी ? निजी अनुभव है कि चौपाइयों का गायन बरबस आपको अपनी तरफ खींचता है और माहौल में एक अलग जोश उभरता मालूम होता है। यों सुंदरकांड असल में हनुमान जी का ब्रिलियन्स है।
भगवान शिव ने बारह रुद्र अवतार लिए थे। हनुमान को उनका ग्याहरवां और श्रेष्ठ रुद्र अवतार माना जाता है। वजह यह थी कि भगवान विष्णु ने शिव को दास्य वरदान दिया था। दास को कुछ लोग गुलाम कहते हैं। असल में इसका एक मतलब होता है भक्त ! जैसे तुलसीदास, सूरदास, रैदास आदि आदि। कहते हैं कि हनुमान सा विरल दास या विरल भक्त दूजा नहीं। वो भक्ति के पर्याय हैं। जब भी राम भक्त की बात हो तो हनुमान सबसे पहले याद आते हैं। कहते हैं उन्हें अमरता का वरदान प्राप्त है। यह भी कि जहां कहीं भी राम कथा होती है, वो किसी न किसी रूप में वहां हाजिर होते हैं। सोचिए, यदि घर में रोज ही राम कथा हो तो ?
चौपाइयां अपने भीतर अलग आनंद का खजाना हैं। फिर उनके गायन की रस्सी इतनी लोचदार है कि नट की तरह उस पर अनगिनत करतब दिखाए जा सकते हैं। कुल मिलाकर उस आनंद को भोगना है तो घर में एक रामचरित मानस और उसका गायन करने वाला परिजन होना ही होना। भले वो रोज चार चौपाइयां ही पढ़े। शुरू में जरूर पढ़ना पड़ता है, लेकिन तय मानिए, कुछ समय बाद आप खुद-ब-खुद उन्हें सहर्ष गाने लगते हैं। कहने की जरूरत न कि यदि ऐसा हो तब हनुमान भी वहीं कहीं हाजिर मिलेंगे और खुश मिलेंगे !
लेखक :- चंद्र शेखर शर्मा