इस सरप्राइज से तो खुद मध्य प्रदेश भी चौंक गया

जाते हुए साल में ऐसा सरप्राइज मिलेगा इसकी कल्पना तो खुद मध्य प्रदेश ने भी नहीं की थी, लेकिन मोहन यादव के हाथों में कमान सौंपकर केंद्रीय नेतृत्व ने संकेत दे दिया है कि उजालों पर सिर्फ श्रेष्ठी वर्ग का ही कब्जा नहीं रहेगा, अब सूर्य किरण खुद चलकर बाद की पंक्तियों में बैठे पिछड़े वर्ग तक भी जाएगी। मोहन यादव को सीएम के लिए उपयुक्त बताने से कद्दावर नेताओं के समर्थकों के चेहरों पर छाई मायूसी बता रही है कि तोते उड़ाने की कला में मोशाजी कितने माहिर हैं। कलफ लगे कुर्ते धरे रह गए, अब तो बयाना भी लौटाना पड़ेगा।

पिछड़े वर्ग के प्रतिनिधि तो प्रह्लाद पटेल भी थे किंतु मोहन ने कब मोदी का मन मोह लिया यह घाघ नेता तक नहीं भांप पाए। पटेल को बनाने का मतलब होता बाकी क्षत्रपों को फूफाजी बनाना। उमा भारती को सत्ता सौंपकर चौंकाने वाली भाजपा ने जब बाबूलाल गौर का चयन किया तब भी चौंकाया था। गौर के बाद अंजाने से शिवराज को तलाशा था, 18 साल बाद मोहन यादव को लाकर भी चौंकाया है। यादव को पांच साल में शिवराज से बेहतर साबित करना अब संघ और भाजपा नेतृत्व का दायित्व है, फिर भी यादव इतना तो कर ही सकते हैं कि शिवराज के जनहितकारी निर्णयों की रफ्तार धीमी ना पड़े।

अभाविप, संघ निष्ठ यादव तीसरी बार के विधायक हैं और विधानसभा में उनके ही दल के ऐसे विधायक भी हैं जो सतत पांच से नौ बार तक जीतते रहे हैं। इन सबका सम्मान आहत ना हो यह भी उनका दायित्व है। विजयवर्गीय से नहीं तो यादव और डिप्टी सीएम जगदीश देवड़ा से मालवा का मान तो बढ़ा ही है। दूसरे डिप्टी सीएम राजेंद्र शुक्ल के बहाने पेशाब कांड से आहत ब्राह्मण समाज की नाराजी दूर करने का काम किया गया है।

कांग्रेस को भाजपा से सीखना चाहिए अनुशासन क्या होता है। विधायक दल की बैठक से पहले न तो किसी विधायक ने मुंह खोला, न ही घुंघरू बांधे घूम रहे दावेदारों ने और न ही उन मोहन यादव ने जो 6 दिसंबर की दिल्ली यात्रा के बाद से ही मूकाभिनय कर रहे थे। उनके नाम की घोषणा के बाद उज्जैन से भोपाल तक खुश होने से अधिक लोग चौंके हैं। मोदी के फैसले पर पहली बार अंगुली उठाने का साहस भी भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ आमजन ने दिखाया है। चौराहों से लेकर विवाह समारोह तक यही चर्चा है कि मोदीजी ने ऐसा फैसला कैसे कर लिया, लेकिन जो लोग राजनीति के बेताज बादशाह मोदी की दूरदृष्टि को जानते हैं उन्हें जरा भी आश्चर्य नहीं है क्योंकि उन्होंने इंडिया गठबंधन के साथ ही यूपी, बिहार में लोकसभा चुनाव से पहले ही साय को छत्तीसगढ़ और मोहन यादव को मप्र की कमान सौंपकर आदिवासी-पिछड़ा वर्ग को भाजपा के पक्ष में लाने के लिए खूंटा गाड़ दिया है।

छात्रनेता, विधायक के रूप में मोहन यादव की छवि उज्जैन में दबंग नेता की रही है। उनकी इस छवि का लाभ लेकर कई लोग लाभ भी उठाते रहे हैं फिर चाहे सिंहस्थ भूमि पर कब्जे हों, अवैध कॉलोनियों के मामले हों, भूमाफिया से सांठगांठ हो, गुंडा तत्वों के पक्ष में थानों पर दबाव बनाना हो। अपने ऐसे निरंकुश समर्थकों के कारण बेवजह बदनामी झेलते रहे यादव को सीएम बनाए जाने पर लोगों के चौंकने की वजह भी यही है। अब यादव पर ही सिंहस्थ भूमि को अतिक्रमण मुक्त रखने का दायित्व भी है।

शैक्षणिक-बौद्धिक-संस्कृति के क्षेत्र में विशिष्ट पहचान बना चुके यादव बखूबी समझते हैं कि अब वो, वो वाले वाले मोहन यादव नहीं हैं जिनके नाम का स्थानीय लोग बेजा फायदा उठाते रहे हैं। अब वे प्रदेश के ऐसे मुख्यमंत्री हैं जिन्हें नरेंद्र तोमर, प्रह्लाद पटेल, कैलाश विजयवर्गीय, वीडी शर्मा और चार बार सीएम रहे शिवराज सिंह की उपलब्धियों को अनदेखा कर बागडोर सौंपी गई है। जिन नेताओं ने इस जिम्मेदारी के लिए उन्हें चुना है उनकी नजरें अब हर वक्त उनकी गतिविधियों पर भी लगी रहेंगी। आरएसएस के सुरेश सोनी का भरोसा उन्हें भोपाल पहुंचा सकता है तो उससे अधिक उन्हें अब केंद्रीय नेतृत्व के साथ भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के विश्वास को कायम रखना होगा।

इंदौर की उम्मीदों पर पत्थर पड़ने से जो घाव हुए हैं उन्हें अब मंत्रिमंडल में पर्याप्त स्थान से ही राहत मिल सकती है। तोमर ने स्पीकर के दायित्व के लिए निश्चित रूप से छत्तीसगढ़ के पूर्व सीएम रमन सिंह से सबक लेकर ही सहमति दी होगी। छग और मप्र के नेताओं और विधायकों ने अनुशासित छात्रों जैसा संयम दिखाया लेकिन राजस्थान में वसुंधरा को नेतृत्व उद्दंड मान चुका है जिनकी वजह से सोमवार को नेता चयन टालना पड़ा।मप्र से शिवराज की तरह राजस्थान में वसुंधरा के लिए भी दिल्ली अब दिलवाली तो शायद ही रहे। मप्र के दावेदारों में तोमर तो सेट हो गए, बचे विजयवर्गीय और पटेल। इन दोनों को क्या बड़ी जिम्मेदारी मिलेगी, यह देखना होगा। किसी एक को प्रदेश भाजपा अध्यक्ष भी बनाया जा सकता है।
लेखक/विश्लेषण :- कीर्ति राणा

  • Related Posts

    जब दिल ही टूट गया

    मंत्री मंडल बनने से पहले की रात कई “माननीयों” पर भारी रही। जब तक नामों की पोटली नहीं खुली थी, उम्मीद ज़िंदा थी। तब नींद में गुनगुनाया करते थे, “शब-ए-इंतेज़ार”…

    भगवान के साथ रोटी

    एक 6 साल का छोटा सा बच्चा अक्सर भगवान से मिलने की जिद्द किया करता था। उसकी अभिलाषा थी, कि एक समय की रोटी वह भगवान के साथ खाए… एक…

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    You Missed

    इंदौर के इतिहास में पहली बार कांग्रेस प्रत्याशी ने चुनाव मैदान छोड़ा

    • By admin
    • April 30, 2024
    • 182 views
    इंदौर के इतिहास में पहली बार कांग्रेस प्रत्याशी ने चुनाव मैदान छोड़ा

    मध्य प्रदेश में बना दुनिया का सबसे ऊंचा जैन मंदिर

    • By admin
    • April 29, 2024
    • 158 views
    मध्य प्रदेश में बना दुनिया का सबसे ऊंचा जैन मंदिर

    महाकाल मंदिर में शुल्क देकर भी शीघ्र दर्शन नहीं कर सकेंगे

    • By admin
    • December 27, 2023
    • 169 views
    महाकाल मंदिर में शुल्क देकर भी शीघ्र दर्शन नहीं कर सकेंगे

    जब दिल ही टूट गया

    • By admin
    • December 27, 2023
    • 165 views

    चार वेद, जानिए किस वेद में क्या है….?

    • By admin
    • December 21, 2023
    • 173 views
    चार वेद, जानिए किस वेद में क्या है….?

    भगवान के साथ रोटी

    • By admin
    • December 21, 2023
    • 166 views
    भगवान के साथ रोटी