लता नहीं वटवृक्ष थीं वो

1974 में लंदन के रॉयल अल्बर्ट हॉल में प्रस्तुति देने वाली वो प्रथम भारतीय थीं। वैसे तो इस महान गायिका को उनके सम्पूर्ण जीवन काल मे अनेकों पुरस्कारों और अलंकारणों से नवाजा गया था लेकिन वो एक ऐसी महान शख्सियत थी जिनके अपने जीवन काल मे ही उनके नाम से अन्य कलाकारो को पुरस्कार दिये जाते थे। लताजी ने 36 भाषाओं में 50 हजार से ज्यादा गाने गाये हैं।

92 वर्षीया स्वर कोकिला, नाईटएंगल ऑफ इंडिया, स्वर साम्राज्ञी आदि के नाम से मशहूर, भारत रत्न, पद्म भूषण, पद्म विभूषण जैसे देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों से सम्मानित हम सबकी चहेती “दीदी” लता दीनानाथ मंगेशकर ने 6 फरवरी 2022 को दूसरी दुनिया में जाने का निर्णय ले ही लिया, उनका यूं चले जाना संगीत की हमारी इस दुनिया के एक युग का अंत है, इस आघात से भारत ही नही सम्पूर्ण विश्व स्तब्ध है।

28 सितंबर, 1929 को इंदौर में जन्मी हेमा, जो बाद में लता के नाम से जानी गई को नम आंखो से श्रद्धांजलि देते हुए हम उनके जीवन के कुछ विशेष पहलुओं पर नजर डालते है उनके पिता दीनानाथ जी का मूल उपनाम हार्डिकर था, वे गोवा के मंगेशी गांव में रहते थे और वहीं पैदा हुए थे, अतः उन्होंने अपना उपनाम मंगेशकर रख लिया था, पारिवारिक परिस्थितियो के चलते  लताजी पढ़ाई तो अधिक नहीं कर सकीं थीं लेकिन दुनिया की 6 बड़ी यूनिवर्सिटीज ने उन्हें डॉक्टरेट की डिग्री प्रदान की है। वैसे तो इस महान गायिका को उनके सम्पूर्ण जीवन काल मे अनेकों पुरस्कारों और अलंकारणों से नवाजा गया था लेकिन वो एक ऐसी महान शख्सियत थी जिनके अपने जीवन काल मे ही उनके नाम से अन्य कलाकारो को पुरस्कार दिये जाते थे। 

विश्व में उनकी प्रसिद्धी और सम्मान का यह आलम था कि इंग्लैंड के लॉर्ड स्टेडियम में उनके लिए एक परमानेंट गैलरी रिजर्व रहती थी जहां बैठकर वो अपना पसंदीदा खेल क्रिकेट देख सकती थी और तो और 1974 में लंदन के रॉयल अल्बर्ट हॉल में प्रस्तुति देने वाली वो प्रथम भारतीय थीं। गायकी की अपनी इस 70 से अधिक सालों की इस लंबी यात्रा मे लताजी ने 36 भाषाओं में 50 हजार से ज्यादा गाने गाये हैं, उनके पेशेवर गायन की शुरुआत 1943 में मराठी फिल्म गजभाऊ के ‘माता एक सपूत की दुन‍िया बदल दे तू’ गाने के साथ हुई थी, 1948 में आई फ‍िल्‍म ‘मजबूर’ में गुलाम हैदर के संगीत निर्देशन में गाया गाना  ‘द‍िल मेरा तोड़ा, मुझे कहीं का ना छोड़ा’ का स्वरों की दुनिया मे लता जी को स्थापित करने मे बड़ा योगदान रहा, वैसे तो उनको गायकी के क्षेत्र मे स्थापित करने मे कई लोगो का योगदान रहा है लेकिन लताजी ने कहा था कि गुलाम हैदर वो पहले संगीत निर्देशक थे जिन्होंने उनकी आवाज पर विश्‍वास जताया था। फिर 1949 में लोगों ने सुना फिल्म महल का धूम मचाने वाला गीत “आयेगा आने वाला… आयेगा” इस गाने से उनकी जादूई का नशा जो लोगो के सर चढ़ा तो आज तक नही उतरा और ना ही कभी उतरेगा।

उनके निधन पर प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने कहा उनको खोने की पीड़ा शब्दों से परे है, बेहद दयालु और देखभाल करने वाली लता दीदी हमें छोड़कर चली गई हैं। वह हमारे देश में एक खालीपन छोड़ गई है जिसे भरा नहीं जा सकता। आने वाली पीढ़ियां उन्हें भारतीय संस्कृति के एक दिग्गज के रूप में याद रखेंगी, जिनकी सुरीली आवाज में लोगों को मंत्रमुग्ध करने की अद्वितीय क्षमता थी।

चकाचौंध भरी इस फिल्मी दुनिया की साम्राज्ञी का अपना निजी जीवन बेहद सादा सरल रहा है, वो मितभाषी और संकोची स्वभाव की थी, उनके जीवन से जुड़े कई पहलू लोगों के बीच रहस्य की तरह ही रहे है। एक बार मंच पर गाने के लिए उन्हें ₹25 मिले थे जिसे वो अपने जीवन की पहली कमाई मानती थी, बहुत कम लोगों को पता है कि उनको YSL PARIS ROSES (वाय एस एल पेरिस रोज) नाम का परफ्यूम बेहद पसंद था, हीरों से उन्हे खासा लगाव था लंदन की बॉन्ड स्ट्रीट स्थित हैरी विंस्टन नामक दुकान हीरे खरीदने के लिए उनकी पसंदीदा जगह थी, अपने विदेशी दौरो के दौरान कभी कभी नीले रंग का सलवार सूट पहन कर केसीनों में  स्लॉट मशीन पर खेलना उनको पसंद था, साड़ियों का उनके पास विशाल संग्रह था चंदूभाई मट्टानी द्वारा संचालित लीसिस्टर स्थित “सोना-रूपा” साड़ीयों के लिए उनकी प्रिय जगह थी। गायन, क्रिकेट और फोटोग्राफी के अलावा लता जी को खाना बनाने और अपने पारिवारिक मित्रो को स्वयम परोसने का बड़ा शौक था, सूजी का हलवा तो वो लाजवाब बनाती थीं । उनके हाथ का चिकन पसंदा का स्वाद जिसने भी चखा है, वह कभी भूल नहीं पाता, लताजी को एक जमाने में इंदौर का गुलाब जामुन और दही बड़े बहुत भाते थे। आज के मशहूर चाईना गार्डन रेस्तरां चेन के मालिक नेल्सन वांग एक जमाने में क्रिकेट क्लब ऑफ इंडिया के चाइनीज रेस्तरा में खाना बनाया करते थे वहाँ वो अक्सर जाया करती थीं।

संभवत: आपको पता नही होगा कि आनंदघन नाम के संगीतकार ने 60 के दशक में चार मराठी फ़िल्मों के लिए म्यूज़िक दिया था और विभिन्न पुरस्कार भी जीते थे, ये व्यक्ति कोई और नहीं बल्कि लता मंगेशकर ख़ुद थीं जो नाम बदलकर संगीत देती थीं.

अपने देश और सेना के जवानों से उनको अत्यंत लगाव था 1962 में जब भारत और चीन जंग के मैदान में एक दूसरे के आमने-सामने थे तो उन्होंने जवानों का हौसला बढ़ाने के लिए युद्धग्रस्त क्षेत्रों का दौरा किया था। लता दीदी 22 नवंबर, 1999 से 21 नवंबर, 2005 तक 6 साल के लिए राज्यसभा सदस्य भी रहीं,  लेकिन लताजी का मानना था कि वो संसद जैसी जगह में कुछ करने के लिए उपयुक्त नही है उनका कर्मक्षेत्र तो सदैव गायन ही रहा है और गायन उनके लिए पूजा का दर्जा रखता था, जिस तरह ईश्वर की उपासना करते समय हम नंगे पैर होते है उसी तरह लताजी नंगे पांव ही गायन का कार्य करती थी यहां तक कि वह स्टूडियो में भी जब वो अपने गाने को रिकॉर्ड करती थी तब भी वह नंगे पांव ही होती थी। यह अपने कर्म के प्रति उनके समर्पण का ही प्रतिफल था कि लताजी अपने जमाने की पहली ऐसी गायिका थी जिन्हे उनके गाये गानो पर रॉयल्टी मिलती थी।

लता जी इतने शांत और सौम्य स्वभाव की थी कि उनके साथ किसी विवाद का होना ही विवादास्पद लगता है। फिर भी लता जी थीं तो एक इंसान ही और एक इंसान के साथ कुछ
विवाद स्वाभाविक रूप से जुड़ जाते है, उनके नाम के साथ भी कुछ छोटे-मोटे विवाद जुड़े, किंतु उन्होंने कभी भी स्वयं उन मुद्दों पर ध्यान नहीं दिया। यही कारण रहा कि यह मुद्दे उन पर कभी हावी नहीं हो पाए। कुछ समय बाद वह स्वत: ही शांत हो जाते और इस प्रकार कोई भी विवाद  कभी उनको छू भी नहीं पाया।

हम सबकी प्रिय गायिका लता मंगेशकर अक्सर कहा करती थीं – मैंने हमेशा जीवन से प्यार किया है, चाहे मेरी यात्रा में कितने भी उतार-चढ़ाव आए हों। आज इस विकट समय में गुलज़ार की कही एक बात याद आ रही है कि लता सिर्फ़ एक गायिका भर नहीं हैं, वो हर हिंदुस्तानी के रोज़ मर्रा के जीवन का हिस्सा बन चुकी हैं, कितना सच कहा था गुलजार ने, उनके बगैर हमारा जीवन रेगिस्तान की तरह सूखा और वीरान हो जाएगा और उनके यूं हमें छोड़कर चले जाने के बाद उनका गाया यह गीत शिद्त से याद आया करेगा “नाम गुम जाएगा, चेहरा ये बदल जाएगा, मेरी आवाज ही पहचान है …”
लेखक :- राजकुमार जैन (स्वतंत्र विचारक)

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