परिणाम वही रहे, जो अपेक्षित थे और होने थे
राजनीति में रुचि रखने वाले अपनी विचारधारा के प्रत्याशी और अपने पसंदीदा प्रत्याशी को जितवाने का प्रयास करते हैं, करना भी चाहिए, अपने दल के किये कार्य, आगामी योजनाएँ, प्रत्याशी की कार्यसंस्कृति आदि के दम पर प्रचार करना… ये सकारात्मक चुनाव के लक्षण हैं।
और अपने प्रत्याशी या दल की भावी योजना न दिखाकर विजय संभावित प्रत्याशी के विषय में अनर्गल प्रलाप करना.. झूठ, प्रपंच, कुटिलता, मनघड़ंत बाते बनाकर प्रसारित करना, विरोधी पक्ष के कार्यकर्ताओं को धमकाना, मखौल उड़ाना, उसके प्रचार में अवरोध पैदा करना….ये नकारात्मक ढंग चुनाव लड़ना कहलाता है।
नकारात्मक चुनाव प्रचार का प्रकार कभी कारगर होता रहा होगा। कहीं अब भी चलता होगा। किंतु आजादी के 75 वर्ष बाद.लोकतंत्र परिपक्व हुआ है। मतदाता अब दोनों पक्ष के सकारात्मक पहलुओं पर दृष्टि रखता है, और जिस दल और प्रत्याशी के पक्ष में नीति, नीयत और कार्यसंस्कृति की अधिकता दीखती है.. वहीं मतदान करते हैं। और कपट, छल, फरेब कर दबाव बनाने वाले अब नहीं चल पाते। अपनी इच्छा और वैमनस्यता लेकर प्रचार में उतरने वाले अपने साथ चाहे झुत बनालें किन्तु मतसंख्या में परिवर्तन नहीं कर सकते।
और हाँ, विजयी प्रत्याशी ही जनप्रतिनिधि होता है, उसका अपमान उस अधिकांश.जनता का अपमान है, जिसने बहुमत दिया है* और जनता सब जानती है। नकारात्मक चुनाव लड़ने वाले देशभर में रोज-रोज “चौकीदार चोर है” का नारा लगाते रहते हैं और जनता चौकीदार को और बड़ा बहुमत देकर विजयी बना देती है। चुनावों में ऐसी हरकतें, ओछापन नहीं होना चाहिए जिससे कि दीर्घकालिक वैमनस्यता उत्पन्न हो जाए, बदले की भावना पनपे, आपस में फूट पड़े।
इन्दौर की कीर्ति देश में और देश की कीर्ति विश्व में बनी रहे…