श्रीमान यह शहर आपसे बड़े और छोटे पत्रकार की परिभाषा जानना चाहता है
हम सिर्फ इतना जानते है, पत्रकारिता करने वाला बैनर बड़ा और छोटा हो सकता है, पत्रकार कभी बड़ा छोटा नही होता।
श्रीमान ज़बान का वज़न बहुत हल्का होता है, पर इससे निकलने वाले शब्द इंसान के किरदार का आइना होते है हम पत्रकार है साहब इंसान के जीवन से मरण के हर पहलू को कागज़ पर उतार देते है, समाज की अच्छाई को समाज मे फैलाने का और बुराई को खत्म करने का किरदार हम निभाते है, अपराधियों के अपराध की तेह तक पहुँचने के बाद ही हम अपनी कलम का ढक्कन (कैप) खोलते है, समाज मे बुराई जन्म न ले उसके लिए सर्दी, गर्मी, बारिश, धूप, दंगे-फ़साद, महामारी जैसी अपदाओ मे भी ना ही हमारी गाड़ी के पहिये थमते है और नाही कलम। बिना जाँच के ही किसी को भी अपराधि बना देने जैसा कृत्य आप करते है, हम नही ।
पत्रकार कौन है और कौन नही यह प्रमाण-पत्र कौन बटेगा और कौन नही इसका फैसला न्यायलय करेगा आप नही…
श्रीमान जिनको आप बड़े पत्रकार कहते है, जो आपके इंटरव्यू के दोरान माइक लेकर आपके आगे पीछे घूमते है क्या कभी आपने उनके पत्रकारिता प्रमाण-पत्र चेक किये है, या फिर आपने उनके हाथों मे नेशनल और लोकल चैनल की आईडी देखकर उनको पत्रकार मान लिया होता है, अगर इंदौर शहर मे पत्रकारिता करने वालो की सच्चाई आपके समक्ष रख दी जाए तो इंदौर शहर के आधे से ज़्यादा पत्रकारो की पत्रकारिता खतरे मे आ जाएगी। इसलिए मेरा अनुरोध मेरे पत्रकार साथियों से भी है, किसी भी पत्रकार को अपने से कमतर न समझे पत्रकार साथी अपने सभी पत्रकार साथियों को लोकतंत्र मे अपना अभिन्य अंग समझे और एक साथ मिलकर अपने अधिकारों के लिये संयुक्त कार्यवाही करे, शासन प्रशासन की बातो मे आकार अपने पत्रकार साथियों के साथ कोई पक्ष-पात या ऐसा कोई व्यवहार न करे जो भविष्य मे हम लोगो को एक दूसरे के सामने ला खड़ा करे,माना लोकतंत्र सभी स्वतंत्र है, पर इसका नजयाज़ फ़ायदा कभी न उठाए।
पत्रकारो को करना क्या है…?
पत्रकारों पर लग रहे ब्लैकमेलिंग के आरोपों के विषय पर ध्यान देने वाली बात यह है, की यह आरोप लगा कौन और क्यू रहा है, यकीनन यह वे लोग है, जिन्होंने भृष्टाचार की जड़े लोकतंत्र को कमज़ोर करने के लिए फैला दी है, ऐसे भृष्टाचारियो को जब तक उनके भृष्ट कार्य के लिए जेल की हवा न खिला दो तब तक चेन से नही बैठना इस दोरान तुम्हे जोड़ने तोड़ने और हवालो के माध्यम से चुप बैठने को कहा जाएगा और इस बार तुम चुप बैठ गए तो यह तय मान लेना तुमने लोकतंत्र के हथियार (कलम) को तोड़ दिया जिस पर तुम्हारा उसके बाद कोई अधिकार नही होगा।
ये बगावत नही परिवर्तन की आंधी है
श्रीमान हमे लगता है आप पत्रकार और पत्रकारिता को समझने की स्थिति मे नही है, क्यू न पत्रकारिता मंथन पर एक टॉक-शॉ हो जाए सवाल पत्रकारो के जवाब आपके कहिये क्या कहते है आप…?
लेखक :- मो. इरफान अली मंसूरी, राजतंत्र समाचार (संपादक)